A Simple Key For hindi poetry Unveiled
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छक जिसको मतवाली कोयल कूक रही डाली डाली
रहे फेरता अविरत गति से मधु के प्यालों की माला'
आने वाले नए विश्व में तुम भी कुछ करके दिखाना
भरता हूँ इस मधु से अपने अंतर का प्यासा प्याला,
'होंठ नहीं, सब देह दहे, पर पीने को दो बूंद मिले'
किसी तपोवन से क्या कम है मेरी पावन मधुशाला।।५४।
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फैले हों जो सागर तट से विश्व बने यह मधुशाला।।३१।
कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला,
सूखें सब रस, click here बने रहेंगे, किन्तु, हलाहल औ' हाला,
हर खुशी के पल में, स्वतंत्रता की धुन गाएँ।
पीकर जिसको चेतनता खो लेने लगते हैं झपकी
धीर सुतों के हृदय रक्त की आज बना रक्तिम हाला,
गलियारे बदल जाते पर ये साए मुझे ढूंढ ही लेते
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